भाग -4
प्रारंभ चुनौतियों का
अनामिका को ध्यान करते और दिव्य आत्मा से साक्षात्कार करते कोई 10-12 दिन ही गुजरे होंगे कि उसे अचानक ऐसे लगने लगा जैसे काले वस्त्रों में डरावनी शक्तियां, जो मानव वेश में थीं, परंतु पहचानी नहीं जा रही थीं, आकर उसे डरा रही थीं ।
वे उसके चारों ओर एकत्रित हो जातीं, जोर-जोर से शोर मचातीं और उसे बार-बार ध्यान रोक देने के लिए दबाव डालती । धमकी देतीं कि यदि उसने ध्यान करना बंद नहीं किया तो वे उसे मार देंगी । वे उसे केवल डराती ही नहीं थीं, शारीरिक कष्ट भी देती थीं और अनामिका को शरीर में पीड़ा होने लगती । अनामिका को रात में सोने में भी बहुत कठिनाई होने लगी थी क्योंकि वह जैसे ही आंखें बंद करती, उसे वही आकृतियां फिर दिखाई देती, वही आवाजें भी सुनाई देती और वह बुरी तरह डर जाती ।
अनामिका दृढ़ संकल्पित थी कि वह अपनी साधना को नहीं रोकेगी और उसे जो दिव्य आत्मा से 101 दिन साधना करने का संकेत मिला था उसे किसी भी तरह बीच में नहीं छोड़ेगी । दूसरी ओर ऐसा लग रहा था कि उपद्रवी शक्तियां उसे अपनी साधना में सफल नहीं होने देंगी ।
इन उपद्रवी शक्तियों को अनामिका की साधना से क्या कठिनाई थी यह समझ में नहीं आ रहा था । अब अनामिका की साधना के समय विशेष तौर से शाम को मैंने स्वयं उपस्थित रहने का निश्चय कर लिया यद्यपि उससे मेरी पूरी दिनचर्या ही बदल जाने वाली थी । पहले सुबह 10:00 बजे अध्यात्म साधना केंद्र जाना, फिर 4:00 बजे वापस आना, 7:00 बजे फिर केंद्र जाना और रात को लगभग 11:00 बजे तक घर पहुंचना ।
ध्यान से बाहर आने के बाद अनामिका लगभग डेढ़ से 2 घंटे कोई भी बात करने की स्थिति में नहीं होती थी और उस दिन का उसका अनुभव जानने के लिए मुझे रात्रि को देर तक इंतजार करना पड़ता । कभी-कभी तो रात को 12:00 भी बज जाते । ऊपर से यह चुनौती, जिसका किसी के पास कोई समाधान नहीं था ।
मैंने 1-2 व्यक्तियों से संपर्क करने का प्रयास किया जो प्रेत आत्माओं आदि को भगाने का काम करते थे, परंतु मेरा किसी में विश्वास जमा नहीं । तब मैंने यह निश्चय किया कि मुझे मुनि जय कुमार जी, जिनका ध्यान की गहराई में जाने का बहुत ही विशिष्ट अनुभव है, उनसे संपर्क करना चाहिए ।
उन्होंने सुझाव दिया कि ध्यान प्रारंभ करने से पूर्व एक कवच का निर्माण कर लेना चाहिए और इस हेतु उन्होंने चारों दिशाओं में ध्यान करते हुए 27-27 बार लोगस्स (जैन परंपरा के 24 तीर्थंकरों की स्तुति), यानी पूरी 108 आवृत्ति की माला फेरने का सुझाव दिया और उसके बाद ध्यान प्रारंभ करने को कहा ।