भाग -5
बढ़ती चिंताएं
अब अनामिका ने सुबह और शाम ध्यान करने से पूर्व लोगस्स (जैन धर्म के 24 तीर्थंकरों की स्तुति का स्त्रोत) का कवच बनाना प्रारंभ कर दिया था और इस प्रकार उसका समय भी अधिक लगने लग गया था । इस प्रयोग को करने से उसका कष्ट थोड़ा कम हुआ और ऐसा लगने लगा कि संभवतः अब उपद्रवी शक्तियां उसे और परेशान नहीं करेंगी ।
परंतु यह प्रयोग संभवतः पर्याप्त नहीं था और कुछ ही दिनों में अनामिका का कष्ट पूर्ववत सामने आने लगा था । एक तरफ तो अनामिका संकल्प पूर्वक कवच का निर्माण करती, ध्यान का प्रयोग करती और दूसरी तरफ उपद्रवी शक्तियां बीच-बीच में आकर उसे बुरी तरह से डरातीं और शारीरिक पीड़ा भी देतीं ।
काले वस्त्र पहने हुए वे उसे चारों ओर से घेर लेतीं, अट्टहास करतीं, आवाजें निकालती और अपनी साधना बंद करने के लिए कहतीं । दूसरी तरफ अनामिका को दैवी शक्तियों का साक्षात्कार भी हो रहा था । उसे ऐसा लगता कि सफेद वस्त्र पहने वे दैवी शक्तियां नवकार मंत्र का जप करते हुए उसके चारों ओर बैठी हैं और बार-बार उसका साहस बढ़ा रही हैं कि उसे इस साधना के क्रम को छोड़ना नहीं है, आगे बढ़ते रहना है । जब कभी वह दिव्य आत्मा से इस बारे में प्रश्न करती तो वहां से भी उसे इसी प्रकार का संकेत मिलता ।
अनामिका के साथ बैठे-बैठे अब मुझे स्पष्ट रूप से ज्ञात होने लग गया था कि कब वह उपद्रवी शक्तियों का सामना कर रही थी और कब दैवी शक्तियां अथवा दिव्य आत्मा उसके सामने थी, क्योंकि उसके अनुरूप ही उसकी पूरी भाव- भंगिमा बदल जाती थी और अनुमान लगाना बहुत ही सहज हो जाता था । कहना न होगा कि मुझे अथवा अन्य साधक जो वहां उपस्थित होते, उन्हें न तो ऐसा कुछ दिखाई देता, न सुनाई देता और न ही कुछ भी प्रतीत होता था ।
मेरे सामने एक भयंकर समस्या थी कि अभी यात्रा बहुत बाकी थी, और मार्ग कोई सूझ नहीं रहा था । कहीं कोई अनहोनी घट जाए तो क्या हो, ऐसा भय सताता रहता था ।
ऐसे में मुझे एक मार्ग सूझा ।