भाग -15
अंतिम प्रहार
उपद्रवी शक्तियों द्वारा दिया जा रहा कष्ट और धमकियां तथा दैवी शक्तियों का संकेत अब मेरे सामने निश्चित समाधान ढूंढने के अतिरिक्त कुछ उपाय न था । अतः मैंने पूरे तेरापंथ धर्म संघ में संभवतः सबसे अधिक ध्यान साधना के लिए सुपरिचित मुनि जय कुमार जी से पुनः संपर्क करने का निश्चय किया और उन्हें पूरी वस्तुस्थिति से अवगत कराया ।
उन्होंने कहा कि एक उपाय है इन शक्तियों का सामना करने का, जिसे एक तरह से इमरजेंसी में ट्रेन में जंजीर खींचने से तुलना की जा सकती है । उनके अनुसार पहले हमने नवकार मंत्र का पदानुक्रम में विपरीत दिशा में माला फेरने का प्रयास किया था और उससे कुछ समय के लिए उपद्रवी शक्तियों को भय भी लगा था परंतु क्योंकि अब वह काम नहीं कर रहा था तो एक और अन्य उपाय पर कार्य करना होगा ।
जैसा कि मैं पहले बता चुका हूं कि मुनि श्री जयकुमार जी के परामर्श अनुसार अनामिका नवकार मंत्र के पांच पद – णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आरियाणं, णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्व साहूणं – इन्हें इस क्रम से उच्चारित करने के स्थान पर सबसे अंतिम पद को सबसे पहले और इसी क्रम में सबसे पहले पद को सबसे अंत में उच्चारित कर रही थी ।
मुनि जयकुमार जी का सुझाव था कि अब केवल क्रम ही विपरीत न रखें अपितु उसे अक्षरशः ही विपरीत कर लेना चाहिए । यानी इसका उच्चारण अब निम्न प्रकार से होना चाहिए :
णंहूसावव्स एलो मोणणंयाझाज्वउ मोणणंयारियआ मोणणंधाद्सि मोणणंताहंरिअ मोण
मैंने न केवल अनामिका को परंतु अध्यात्म साधना केंद्र में उपस्थित सभी साधकों से निवेदन किया कि वे भी अनामिका के साथ साधना के समय उपस्थित रहें और इस मंत्र का जप मुनि श्री जय कुमार जी के परामर्श अनुसार विपरीत रूप से करें । अब तो जैसे सभी साधक अनामिका के कष्ट को अपना मानने लगे थे और वे सभी इसमें अपना पूरा सहयोग करने को तत्पर थे । और उन्होंने उसी संध्या काल से अनामिका के साथ बैठकर इस विधि के अनुसार नवकार मंत्र का उच्चारण करना प्रारंभ कर दिया ।
इस जप का प्रभाव भी तुरंत दिखाई देने लगा और अब उपद्रवी शक्तियों ने अनामिका को चुनौती देते हुए कहा था कि इस मंत्र के जप से उन्हें कष्ट हो रहा था परंतु वे इससे घबराने वाली नहीं थी । उस दिन तो वे जा रही थीं परंतु वे पुनः आयेंगी और अनामिका की साधना को भंग करने हेतु उसे विवश करेंगी । उनकी चेतावनी यानी कि मौत की धमकी पूर्ववत् थी और उन्होंने यह भी कह दिया था कि अनामिका अपने साधना के 50 दिन पूरे नहीं कर पायेगी ।
अब यह स्पष्ट था कि एक और उपद्रवी शक्तियां इस जप के प्रभाव से भयभीत हो रही थीं और वापस जा रही थीं तो दूसरी ओर वे अपनी धमकी को पूर्ववत् बनाए हुए थी ।
मुनि जय कुमार जी ने, मुनि धर्मेश कुमार जी ने, समणी वृंद ने और अन्य साधकों ने हमें बार-बार यही कहा था कि उपद्रवी शक्तियां भयभीत कर हमें कष्ट तो पहुंचा सकती थीं, परंतु वे प्राण ही ले लें ऐसा संभव नहीं था । अतः पूरा संघर्ष भयभीत होने और अभय रहने के बीच था कि इनमें से कौन विजयी होता है ।
इन परिस्थितियों में आगामी दिन के लिए हमें और योजना बनानी और उपाय करना अपेक्षित था ।