भाग -14
क्या मौत सामने खड़ी थी ?
अनामिका की साधना के साथ साथ उसकी तपस्या भी चल रही थी और उसी अनुपात में उपद्रवों का जोर भी । अनामिका ने भोजन संयम तो पहले ही प्रारंभ कर दिया था, अब तो वह उपवास भी रख रही थी और कभी-कभी दो या तीन उपवास एक साथ । इस चीज का प्रभाव उसके स्वास्थ्य पर भी पड़ रहा था । दूसरी ओर जैसे इसी अनुपात में उपद्रवों का जोर भी बढ़ रहा था ।
उपद्रवी शक्तियां उसे बार-बार दिखाई देतीं, उसे भयभीत करने की कोशिश करतीं और उसे शारीरिक पीड़ा भी देती, जिससे उसका शरीर टूटने लग जाता । वे उसे बार-बार अपनी साधना बंद कर देने का आदेश दे रही थीं और न करने पर परिणाम भुगतने की चेतावनी भी । यहां तक कि वे उसे यह भी बता रहीं थी कि ऐसा न करने पर उसकी मौत निश्चित थी ।
दूसरी ओर दैवी शक्तियां बार-बार आकर अनामिका का साहस बढ़ाती और उसे अपने संकल्प पर दृढ़ रहने का सुझाव देतीं । कभी-कभी अनामिका को उपद्रवी शक्तियां और दैवी शक्तियां एक साथ दिखाई देतीं ।
उपद्रवी शक्तियां, ऐसा लगता, जैसे काले वेश में हों और उसके चारों ओर एकत्रित होकर उसे भयभीत कर रही हों । वहीं दैवी शक्तियां सफेद वस्त्रों में नवकार मंत्र का जप करती हुई और हिम्मत बंधाती हुई नजर आती । यद्यपि पहचानने में कुछ भी नहीं आ रहा था ।
अब साधना को लगभग 47 अथवा 48 दिन हो गए थे और अनामिका को दिव्य आत्मा से भी यह संकेत मिला था कि अगले दो-तीन दिन बहुत चुनौतीपूर्ण हो सकते थे और इन्हें पार करना बहुत जरूरी था अन्यथा कुछ भी घटित हो सकता था । एक तरह से अनामिका को मौत सामने दिखाई दे रही थी ।
इसी समय अपने ध्यान से बाहर आने और संयत होने के बाद देर रात्रि को अनामिका ने मुझसे फोन पर कहा कि वह अपने संकल्प को छोड़ने वाली नहीं थी, परंतु उसे चिंता केवल एक बात की थी कि उसके जाने के बाद उसके भाई की पढ़ाई कहीं रुक ना जाए । अतः वह मुझसे इस बात का आश्वासन चाहती थी कि यदि उसे कुछ हो जाए तो उसके भाई की पढ़ाई निर्बाध जारी रह सकेगी ।
मैंने उसकी हिम्मत बढाते हुए और निर्भय रहने का उपदेश देते हुए उसे यह विश्वास दिलाया कि उसके भाई की पढ़ाई किसी भी दशा में अविराम चलती रहेगी । इससे उसका साहस और बढा और उसने कहा कि अब वह पूरी हिम्मत के साथ इस उपद्रव का सामना करेगी और अपने संकल्प को डिगने नहीं देगी । परंतु अनामिका की इस स्थिति ने मुझे बहुत गहरी चिंता में डाल दिया था और किसी अनहोनी का भय अब मुझे भी सताने लगा था, जिसे मैं सार्वजनिक भी नहीं कर सकता था । इसका कुछ न कुछ निश्चित उपाय करना अब अनिवार्य हो गया था ।