भाग -16
लड़ाई आर-पार की
अनामिका की साधना के 49वें दिन अध्यात्म साधना केंद्र के केवल साधकों ही नहीं अपितु अन्य साथियों ने भी यह संकल्प स्वीकार किया कि वे सब उपवास रखेंगे और अनामिका के साथ बैठकर विपरीत क्रम से अक्षरशः नवकार मंत्र का जप करेंगे । इसमें सभी ने बारी-बारी से अपना समय निश्चित कर लिया था और अखंड जप में जुट गए थे ।
मैंने भी निश्चय किया कि इस काल में मैं स्वयं भी अध्यात्म साधना केंद्र में जाकर रहूंगा और सब का सहयोग देने और मनोबल बढ़ाने का प्रयास करूंगा । अनामिका की माताजी भी उसके साथ केंद्र में ही आकर रह रहीं थी ।
सभी ने बारी-बारी से क्रम बना कर पूरे काल तक अनामिका के साथ रहने का और अखंड जप करने का निश्चय किया । इस प्रकार लगभग 24 घंटे कम से कम 2 साधक लगातार अनामिका के साथ बने रहे और जप करते रहे, फिर चाहे वह ध्यान कर रही थी अथवा अपने कमरे में थी ।
इस दिन संध्याकाल में जब इस प्रकार से उपवास और अखंड जप का कार्यक्रम चल रहा था तो उपद्रवी शक्तियां आयी तो सही परंतु उन्होंने यह स्वीकार किया कि वे इस जप के कारण होने वाले कष्ट को नहीं सह पा रही थी । साथ ही इसके कारण अनामिका के चारों ओर एक ऐसा कवच बन गया था जिसे वे भेद भी नहीं पा रही थी । उन्होंने यह भी कहा कि अब वे वापस जा रही थीं और उनका पुनः आकर अनामिका को कष्ट देने का कोई भाव नहीं था ।
दूसरी ओर दैवी शक्तियों और दिव्यात्मा ने भी अनामिका को यह संकेत दिया कि अनामिका का कष्ट अब टल गया था और वह आगे की साधना उपद्रव रहित पूरा कर सकती थी ।
अनामिका की समस्या का इस तरह समाधान होते देखकर हम सभी को अत्यंत संतोष का अनुभव हुआ और सभी के चेहरे पर एक प्रसन्नता की लहर दौड़ गई, मानो हमने कोई बहुत बड़ा अंतरराष्ट्रीय मैच जीत लिया हो ।
मैं अब आगामी साधना काल में अनामिका से और बहुत कुछ जानने और समझने की व्यग्रता से प्रतीक्षा करने लगा था ।