भाग -6
झलक अतींद्रिय ज्ञान की
इधर अनामिका का दैवी और उपद्रवी शक्तियों से साक्षात्कार का क्रम चल रहा था और उधर कभी-कभी ऐसा संकेत मिलने लगा था कि संभवतः वह अज्ञात से संपर्क कर सकती थी अथवा उसकी जानकारी दे सकती थी । ऐसा ही एक प्रसंग अचानक ही अध्यात्म साधना केंद्र में उपस्थित हो गया था ।
जैन परंपरा की एक समणी (संन्यास की प्रारंभिक अवस्था) अचानक ही बिना किसी सूचना के केंद्र को छोड़कर चली गई थीं । जैन परंपरा में दीक्षा स्वीकार करने के बाद यदि उसकी चुनौतियों को स्वीकार करने में कोई अपने आप को अक्षम पाता है तो उसे गृहस्थ में लौटने की स्वतंत्र है । अतः यह स्पष्ट नहीं हो रहा था कि वे अचानक ही कैसे गायब हो गई थी । केंद्र के प्रभारी के रूप में मेरा चिंतित होना स्वाभाविक था क्योंकि उनका कोई सुराग नहीं मिल रहा था । हमने उनके परिवार वालों को सूचित कर दिया था और उनको भी कोई सुराग नहीं थी ।
मेरे मन में विचार कौंधा कि क्यों नहीं जब अनामिका रात्रि को ध्यान का प्रयोग कर रही हो तो उस वक्त इसके बारे में कुछ जानकारी प्राप्त की जाए । अतः उसके ध्यान की अवस्था में, जब मेरी समझ के अनुसार वह दैवी शक्ति से साक्षात्कार कर रही थी, तो मैंने उन समणी जी के बारे में अनामिका से प्रश्न किया । उत्तर मिला कि वे जहां कहीं भी हैं सुरक्षित हैं और थोड़े ही समय बाद उनके बारे में उपयुक्त जानकारी मिल जाएगी । इसके अतिरिक्त कुछ नहीं बताया गया यद्यपि हमने जानने का प्रयास जरूर किया था ।
यहां यह स्पष्ट कर दूं कि इस प्रकार के अन्य भी कई प्रसंग उपस्थित हुए और अनामिका से जो भी प्रश्न किए जाते अथवा जिनका भी वह उत्तर देती बाद में उसे इसके बारे में कोई जानकारी नहीं होती थी । वह तो जैसे केवल एक चैनल अथवा माध्यम के रूप में काम कर रही थी । बहुत बार तो फुसफुसाहट भरा उसका उत्तर बड़ा ही अस्पष्ट भी होता था और समझने में कठिनाई होती थी अथवा बहुत बार उत्तर गूढ होता था जिसका अर्थ लगाना लगभग संभव नहीं था ।
खैर, हमने अपना प्रयास जारी रखा परंतु कोई भी सूचना नहीं मिली । दो दिन बाद उन समणी जी के स्वस्थ और एक सुरक्षित स्थान पर होने की सूचना मिली और यह भी कि वे अब पुन: सन्यास में लौटने को प्रस्तुत नहीं थी । उनके परिवार का भी संभवतः उनसे संपर्क हो गया था और वे उनके साथ ही थे ।
ऐसी घटनाओं का क्रम और भी है परंतु वर्तमान में तो हमारी कठिनाई अनामिका के द्वारा उपद्रवी शक्तियों द्वारा दिए जाने वाले कष्ट को लेकर थी और समाधान मिल नहीं रहा था । परंतु यदि साधना का क्रम जारी रखना था तो समाधान तो खोजना ही था ।