भाग -2
साक्षात दिव्य आत्मा का
अनामिका की साधना अब बराबर चल रही थी और वह नियमित ध्यान कर रही थी । ध्यान का एक व्यवस्थित क्रम हो गया था और वह प्रभावी प्रशिक्षिका के रूप में सामने आ रही थी । केंद्र में आने वाले साधक उसी से ही प्रशिक्षण लेने में रुचि रखते थे ।
बीच-बीच में कुछ ऐसे क्षण भी आए जब अनामिका ने घटनाओं का पूर्वाभास देना अथवा ध्यान की गहराई में जाकर अनसुलझे प्रश्नों का उत्तर देना भी प्रारंभ कर दिया । न तो ऐसा करने की उसे प्रेरणा दी गई थी और न ही उसकी कोई ऐसी इच्छा । यह तो स्वत: ही हो रहा था ।
ऐसा करते-करते संभवत: लगभग जुलाई मास में अनामिका को अचानक ऐसा आभास होने लगा कि उसे किसी दिव्यात्मा का साक्षात्कार हो रहा है, जिसकी उसने मुझसे चर्चा की । उसके अनुसार वह दिव्य आत्मा बहुत विशाल थी और अत्यंत तेजोमय भी । योगक्षेम भवन के मंत्र साधना कक्ष में जहां अनामिका ध्यान करती थी, उसके अनुसार, वह सामने मंच पर केवल उस दिव्य आत्मा के चरणों को ही देख पाती थी । उस तेज के सामने आंखें उठाकर देखना संभव नहीं था, यद्यपि वह साक्षात्कार बहुत ही दिव्य, आहलाद्कारी और अनुपम था ।
अनामिका का दिव्य आत्मा से वार्तालाप भी शुरू हो गया था । अनामिका लगभग दो-दो घंटे ध्यान में बैठी रहती और कई बार तो उसके प्रसन्नता के आंसू बहने लगते । दिनांक 12 जुलाई को दिव्य आत्मा ने उसे संकेत दिया था कि उसे 101 दिन लगातार ध्यान करना है । मैंने उससे उस दिव्य आत्मा का परिचय प्राप्त करने को कहा ।
ऐसा लगभग रोज ही हो रहा था और जिस दिन दिव्यात्मा के दर्शन नहीं हो पाते अनामिका उदास हो जाती । प्रश्न पूछने पर दिव्यात्मा ने अपना नाम भी बताया ।
अनामिका न तो जैन परंपरा से है और न ही उसे इस परंपरा का कोई ज्ञान है । जो नाम उसे बताया गया वह भी उसके लिए अपरिचित था । जैन परंपरा के अनुसार यदि वह नाम सही था तो वे सिद्ध भगवान हो चुके हैं और सिद्धात्माओं का दर्शन संभव नहीं है । अतः अनामिका की बात पर विश्वास करना संभव नहीं हो पा रहा था ।
मैंने उससे अगले दिन पुन: दिव्यात्मा से परिचय प्राप्त करने और यह सुनिश्चित करने को कहा कि वे जैन परंपरा की मान्यता वाली दिव्य आत्मा ही हैं । अनामिका ने यही प्रश्न किया और उत्तर मिला कि वे वही हैं । कुछ गूढ रूप में उन्होंने कहा कि अपेक्षा होने पर वे दर्शन भी दे सकती हैं जोकि बहुत स्पष्ट नहीं हुआ । और आगे यह भी कहा कि अनामिका पूर्व जन्म में एक जैन श्राविका थी और उसका नाम भी यही था ।
पूरी प्रक्रिया जहां आश्चर्यचकित कर रही थी वहीं रहस्यमयी भी थी । किसी अनजाने पथ की ओर यह हमारा मार्ग प्रशस्त कर रही थी ।
ऐसा स्पष्ट हो रहा था कि बहुत कुछ सामने आना बाकी है ।