भाग -1
प्रारंभ एक रहस्यमयी यात्रा का
अनामिका अध्यात्म साधना केंद्र की एक कुशल प्रशिक्षिका है और उसके स्वर में एक माधुर्य है । वह रुचिपूर्वक ध्यान का प्रयोग करती और करवाती है । 31 मार्च, 2019 को अणुव्रत भवन में मैंने साध्वी कुंदन रेखा जी के दर्शन किए और ध्यान के माध्यम से स्वास्थ्य लाभ पर चर्चा हुई । यह देखते हुए कि उनके लिए अध्यात्म साधना केंद्र पधारना संभव नहीं था और वे अणुव्रत भवन में सात-आठ दिन ही विराजने वाली थीं, मैंने अनामिका को उन्हें ध्यान का प्रयोग करवाने के लिए नियोजित करने का निवेदन किया जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया । दूसरे दिन से अनामिका ने अणुव्रत भवन जाकर साध्वी श्री के साथ अर्हम और नवकार पर ध्यान करना प्रारंभ किया । साध्वी श्री ने भी मनोयोग से प्रयोग करना प्रारंभ कर दिया ।
साध्वीश्री के अर्हम् के लयबद्ध और शुद्ध उच्चारण में एक अपनी विशिष्टता थी । अनामिका प्रशिक्षिका तो थी परंतु उसे ध्यान की गहराई में जाने का अनुभव नहीं था । साध्वी श्री के साथ प्रयोग करते हुए दूसरे दिन ही उसे चैतन्य केंद्रों पर प्रकंपन अनुभव होने लगे और दो-तीन दिनों में तो उसे लगा कि जैसे सारे ही चैतन्य केंद्र प्रक्रम्पित हो उठे हैं । उसे असीम ऊर्जा और शांति का अनुभव होने लगा । उसे लगने लगा कि जैसे वह किसी दूसरी ही दुनिया में पहुंच रही थी ।
आठ दिन बीतते-बीतते तो साध्वी श्री ने णमो सिद्धाणं के साथ अरुण रंग का जो ध्यान किया तो उन्हें ऐसा अनुभव होने लगा कि मानो उनके शरीर में जो खुजली थी, अथवा अन्य समस्याएं थीं, उस रोग के परमाणु उस रंग में जल रहे हैं, झड़ रहे हैं और वे स्वस्थ हो रही हैं । सहवर्ती साध्वियों के अनुभव भी कुछ ऐसे ही थे ।
मैंने अनामिका से कहा कि अब उसे इन प्रयोगों को जारी रखना है और अनुभव की गहराई में जाने का प्रयास करना है ।