प्रेक्षा ध्यान में श्वास प्रेक्षा के अथवा श्वास को देखने के चार प्रयोग बताए गए हैं । वे हैं – सहज श्वास प्रेक्षा, दीर्घ श्वास प्रेक्षा, समताल श्वास प्रेक्षा और समवृति श्वास प्रेक्षा ।
सहज श्वास प्रेक्षा में आने जाने वाले श्वास को केवल ज्ञाता दृष्टा भाव से देखा जाता है । केवल देखना और धीरे धीरे श्वास जहां नथुनों से संपर्क करता है वहां उसके गर्म और ठंडे होने के स्पर्श को अनुभव करना, उसे गहराई तक ले जाना । मन को एकाग्र करने और श्वास को सूक्ष्म स्तर पर जानने का यह एक बहुत ही सुंदर प्रयोग है और ध्यान की अधिकतर परंपराओं में इसका प्रयोग किया जाता है ।
प्रेक्षा ध्यान की परंपरा में इसी प्रयोग को जब थोड़ा आगे बढ़ाया जाता है तो दीर्घ श्वास का प्रयोग किया जाता है । इसमें श्वास गहरा और लंबा हो जाता है । पहले यह सायास किया जाता है और फिर वह स्वत: ही होने लगता है । नियम यह है कि श्वास जितना दीर्घ और लयबद्ध होगा, विचार उतने ही कम और मन उतना ही अधिक शांत होगा । दीर्घ श्वास प्रेक्षा का प्रयोग विचारों की श्रृंखला को तोड़ने, उनकी संख्या कम करने और मन को शांत करने का एक महत्वपूर्ण और सरल प्रयोग है ।
समताल श्वास प्रेक्षा में एक निश्चित अनुपात में और निश्चित गति के साथ श्वास लिया जाता है, रोका अथवा कुंभक किया जाता है और फिर निश्वास हुआ अथवा श्वास छोड़ा जाता है । जहां सामान्यतया श्वास सहज रूप में अपनी गति से आता और जाता है और अपनी लय में रहता है, वहां समताल श्वास प्रेक्षा में सायास मन के द्वारा श्वास पर नियंत्रण स्थापित कर इसे एक गति और लय प्रदान की जाती है । श्वास की गति और लय हमारे शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य की परिचायक है । वह सहज रूप में हमारे स्वास्थ्य के थर्मामीटर का कार्य करती है । परंतु जब हम उसकी गति और लय को संतुलित और नियमित बना देते हैं तो वही हमारे स्वास्थ्य की चाबी भी बन जाता है और हमें स्वस्थ करने का कार्य प्रारंभ कर देता है । एक अन्य महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि जहां एक ओर श्वास हमारे मन को प्रभावित करता है वहीं इस प्रयोग के द्वारा, बहुत गहराई से श्वास को देखते हुए, उसकी गति और लय को समताल बनाते हुए, हम श्वास पर नियंत्रण स्थापित करते हैं । जहां एक और मन के द्वारा श्वास को नियंत्रित किया जा रहा है वहीं इसी प्रक्रिया में यही श्वास लयबद्ध होकर, नियंत्रित होकर, हमारे मन को एकाग्र और नियंत्रित करता है । अतः यह एकाग्रता का, मन को नियंत्रित करने का और विचारों को शांत करने का एक बहुत प्रभावी प्रयोग है ।
समवृति श्वास प्रेक्षा का प्रयोग हमारी इड़ा और पिंगला में प्रवाहित होने वाली ऊर्जा को संतुलित करता है । इसके माध्यम से पूरी प्राण शक्ति संतुलित होती है । प्राणशक्ति का असंतुलन ही अस्वास्थ्य है और उसका संतुलन ही स्वास्थ्य । बाएं और दाएं नथुने से लिए जाने वाला श्वास क्रमशः चंद्र स्वर और सूर्य स्वर के रूप में हमारी प्राणशक्ति के संतुलन का कार्य करता है । समवृति श्वास प्रेक्षा के माध्यम से हम सूक्ष्म स्तर पर जाकर, इस प्राणशक्ति पर मन की एकाग्रता के साथ दृष्टा भाव रखते हुए नियंत्रण स्थापित करते हैं और हमारी ऊर्जा पर संतुलन स्थापित करते हैं ।
देखने में यह सभी प्रयोग एक तरह से प्राणायाम का ही दूसरा प्रकार लग सकते हैं परंतु इनमें कुछ महत्वपूर्ण अंतर हैं । पहला अंतर तो यह है कि प्राणायाम का प्रयोग हाथ का सहारा लेकर किया जाता है जबकि श्वास प्रेक्षा का प्रयोग मानसिक रूप से किया जाता है । दूसरे, प्राणायाम का प्रयोग एक स्थूल स्तर का प्रयोग है जबकि श्वास प्रेक्षा का प्रयोग सूक्ष्म स्तर का प्रयोग है जो हमें सीधे प्राण शक्ति के साथ जोड़ता है । तीसरा श्वास प्रेक्षा के प्रयोग से बाह्य रूप से देखने पर तो यह लगता है कि हम मन से श्वास पर नियंत्रण कर रहे हैं परंतु इसका सही मायने में प्रभाव श्वास से मन पर नियंत्रण करने में होता है ।
एकाग्रता को साधने, ध्यान की गहराई में जाने, विचारों को कम करने, मन को शांत करने और सूक्ष्म स्तर पर जाकर प्राण ऊर्जा को अनुभव करने और संचालित करने के प्रेक्षा ध्यान के ये महत्वपूर्ण प्रयोग न केवल हमें सर्वांगीण स्वास्थ्य प्रदान करते हैं अपितु ध्यान की गहराइयों में ले जाने और उसके रहस्यों के प्रकट करने के अति उत्तम साधन भी हैं ।
-केसी जैन
आपने बहुत अच्छे से समझाया , कृपया ये चारों प्रयोग कैसे किए जाएं , ये जानकारी अगर आप उपलब्ध करा सकें तो अति कृपया होगी
यह जानकारी हमारे Youtube पर उपलब्ध है| ज्यादा जानकारी के लिए कॉल करें 9643300652