प्रेक्षा ध्यान में ध्यान का प्रारंभ महाप्राण ध्वनि के साथ किया जाता है । इसमें पहले लंबी एवं गहरी सांस ली जाती है और फिर भंवरे की तरह गुंजार करते हुए श्वास को बाहर छोड़ा जाता है। इस प्रक्रिया के करने से एक तरफ तो श्वास दीर्घ हो जाता है और दूसरी ओर भंवरे की तरह गुंजार करने से एक अलग प्रकार की ध्वनि निकलती है जो मस्तिष्क के न्यूरॉन्स को क्रियाशील करना प्रारंभ कर देती है। प्रारंभिक दृष्टि से तो महाप्राण ध्वनि का प्रयोग बहुत ही साधारण लगता है, परंतु यदि गहराई से विचार किया जाए तो महाप्राण ध्वनि में शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य के रहस्य छुपे हुए हैं ।
हम अपनी बात शारीरिक स्वास्थ्य से प्रारंभ करते हैं। हम जानते हैं कि जैसे ही श्वास दीर्घ और लय बंद होता है वैसे ही हमारे शरीर में ऑक्सीजन की आपूर्ति पूरी हो जाती है । हम सामान्य श्वास की क्रिया में ऑक्सीजन की आपूर्ति पूरी नहीं कर पाते हैं । फलस्वरूप एक तरफ तो प्राणवायु पर्याप्त मात्रा में हमारे फेफड़ों को और उसके माध्यम से हर कोशिका तक आवश्यकतानुसार नहीं मिल पाती है और दूसरी ओर उसी अनुपात में जो कार्बन डाइऑक्साइड अथवा टॉक्सिक्स को बाहर निकलना चाहिए, वे निकल नहीं पाते हैं। महाप्राण ध्वनि के प्रयोग में प्रारंभ से ही हमारी श्वास लेने की गति लगभग 20 सेकंड प्रति स्वास हो जाती है। साधारणतया एक व्यक्ति एक मिनट में 15, १७ अथवा उससे भी अधिक स्वास लेता है । अतः जब यह श्वास की गति मंद होकर 1 मिनट में 3 या उससे भी कम हो जाती है तो उसी अनुपात में ही हमारे भीतर ऑक्सीजन की आपूर्ति अधिक होना प्रारंभ हो जाती है और कार्बन डाइऑक्साइड का बाहर निकलना भी उसी अनुपात में बढ जाता है । यही नहीं, महाप्राण ध्वनि के प्रयोग में श्वास लेने से अधिक समय श्वास को बाहर निकालने में लगता है । वास्तव में जितनी भी यौगिक क्रियाएं हैं और जिनका भी संबंध स्वास से है, वहां इसी बात का प्रावधान है कि श्वास बाहर निकालने में श्वास लेने से अधिक समय लगना चाहिए, क्योंकि जब अधिक देर तक श्वास बाहर निकाला जाता है तो टॉक्सिक्स बाहर निकल जाते हैं । जब स्थान रिक्त हो जाता है तो स्वत: ही गहरा लंबा श्वास लिया जाता है और ऑक्सीजन की आपूर्ति हो जाती है । अतः श्वास को बाहर निकालने पर स्वास्थ्य अंदर लेने से भी अधिक ध्यान दिया जाता है। इस प्रकार दीर्घ श्वास लेकर, ऑक्सीजन की आपूर्ति बढ़ाकरऔर कार्बन डाइऑक्साइड को बाहर निकालकर हम एक तरह से प्रत्येक कोशिका को स्वस्थ बनाने का प्रयास करते हैं। अभ्यास करते-करते यह श्वास लेने की गति और अधिक मंद होती चली जाती है और व्यक्ति 25-30 सेकंड या उससे भी अधिक समय में एक श्वास लेता है। कहना न होगा की स्वास जितना अधिक दीर्घ होगा, प्राणवायु की आपूर्ति उतनी ही अधिक होगी और उसी अनुपात में ही हमारे शरीर से टॉक्सिक्स बाहर निकलेंगे और हम शारीरिक स्तर पर अधिक से अधिक स्वास्थ्य को अनुभव करेंगे।
इसी बात को यदि हम मानसिक स्तर पर लेकर जाते हैं तो श्वास की गति और लय का सीधा संबंध हमारे विचारों से भी है। हम जानते हैं कि एक व्यक्ति एक मिनट में औसत 15 से 17 सांस लेता है तो लगभग 40 विचार उसे आते हैं जिसे बीटा स्टेट ऑफ माइंड कहा जाता है। जितनी अधिक विचारों की संख्या होगी या विचारों में जितना अधिक तनाव होगा श्वास की गति भी उतनी ही तीव्र होगी और उसकी लय भी उतनी ही अधिक अनियमित होगी। इसके विपरीत यदि श्वास की गति और लय व्यवस्थित हो और साथ ही वह श्वास दीर्घ हो तो विचारों की संख्या उसी अनुपात में कम होनी प्रारंभ हो जाती है। अतः जब हम महाप्राण ध्वनि में दीर्घ श्वास लेते हैं तो धीरे-धीरे अभ्यास के साथ विचारों की संख्या अपने आप कम होने लगती है और मन शांत होने लगता है । जैसे जैसे मन शांत होने लगेगा, वैसे वैसे व्यक्ति मानसिक स्वास्थ्य को प्राप्त करने लगेगा । इस प्रकार महाप्राण ध्वनि मानसिक स्वास्थ्य का एक बहुत ही सरल और उत्तम साधन है।
मानसिक स्वास्थ्य का इससे जुड़ा हुआ एक और अन्य पक्ष भी है, वह है मस्तिष्क के न्यूरॉन्स का क्रियाशील होना । महा प्राण ध्वनि से जब हम भंवरे की तरह गुंजार करते हैं तो हमारे मस्तिष्क के न्यूरॉन्स क्रियाशील होना प्रारंभ हो जाते हैं । यह क्रियाशीलता यदि हम बार-बार बनाए रखें तो मस्तिष्क के न्यूरॉन्स अधिक क्रियाशील और शक्ति संपन्न होते हैं । स्मृति का कम होना और यहां तक की मस्तिष्क से संबंधित अन्य बीमारियां जैसे अल्जाइमर आदि में भी इसमें लाभ होता है।
भावनात्मक स्वास्थ्य का भी सीधा संबंध महाप्राण ध्वनि से है । हमारे भावनात्मक जगत में जो भी क्रोध, लोभ, हिंसा, ईर्ष्या आदि के भाव पैदा होते हैं, वे तुरंत हमारे नर्वस सिस्टम को, हमारे एंडोक्राइन सिस्टम को और हमारे शरीर को प्रभावित करते हैं । भाव जगत का छोटे से छोटा परिवर्तन हमारे पूरे अस्तित्व पर अपना प्रभाव डालता है । आधुनिक मेडिकल साइंस अब इस बात पर जोर देने लगी है कि हमारे भीतर जितनी भी बीमारियां हैं उनमें से लगभग 90% मनोकायिक हैं अथवा साइकोसोमेटिक है । बीमारियों का मूल कारण कहीं हमारे भीतर, हमारे भाव जगत में छुपा हुआ है। हम अपने भाव जगत को स्वस्थ रख सकें, अपने क्रोध अथवा अपने भय आदि पर संयम रख सकें तो हम अपने स्वास्थ्य की दिशा में एक बहुत बड़ा काम कर सकते हैं । भावों में परिवर्तन का सीधा प्रभाव श्वास की गति और लय पर भी पड़ता है । यदि वैज्ञानिक जगत में और गहराई से शोध हो तो हम पाएंगे कि श्वास की गति और लय एक तरह से हमारे पूरे शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य का प्रतिबिंब है । वास्तव में हमारे श्वास की गति और लय न केवल प्रतिबिंब है, यह हमारे शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य की चाबी भी है । जहां एक ओर हम श्वास की गति और लय से हमारे स्वास्थ्य की अवस्था को जान सकते हैं वहीं दूसरी ओर इसी श्वास की गति और लय को संयमित कर उस स्वास्थ्य को पुनः भी प्राप्त कर सकते हैं । यदि किसी व्यक्ति को क्रोध बहुतअधिक आता है, परंतु वह स्वास को दीर्घ करने की, संयमित करने की, लयबद्ध करने की कला को जानता है तो वह एक तरह से अपने क्रोध पर नियंत्रण की चाबी अपने पास पा लेता है। स्वास संयमित हो, दीर्घ और लयबद्ध हो और क्रोध आए यह संभव नहीं है । जिस प्रकार प्रकाश और अंधकार एक साथ नहीं रह सकते, उसी प्रकार से दीर्घ, लयबद्ध श्वास और क्रोध एक साथ नहीं रह सकते । यदि हमें श्वास की गति को लयबद्ध करने का, दीर्घ करने का अभ्यास है तो हमारे क्रोध पर, हमारे भय पर या हमारे दूसरे ऐसे ही भावों पर स्वत ही नियंत्रण स्थापित होना प्रारंभ हो जाता है । जैसे जैसे हमारा इस दिशा में अभ्यास बढ़ता है, वैसे वैसे हमारा भावनात्मक संतुलन स्थापित होना प्रारंभ हो जाता है और हम एक अधिक प्रसन्न एक अधिक विश्वास भरा जीवन जीने के आदी हो जाते हैं।
इस प्रकार महाप्राण ध्वनि एक बहुत ही सहज रूप में हमारे शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य का एक ओर तो बैरोमीटर है और दूसरी ओर स्वास्थ्य प्राप्त करने की कुंजी भी । ध्यान के प्रारंभ में ही महाप्राण ध्वनि का प्रयोग कर हम शारीरिक स्तर पर स्वास्थ्य प्राप्त करते हैं मानसिक स्तर पर मन को शांत करते हैं, विचारों को शांत करते हैं और भावनात्मक स्तर पर संतुलन स्थापित करते हैं । इससे ध्यान की दिशा में आगे बढ़ने की हमारी गति सहज हो जाती है ।