भाग -9
प्रश्नोतरी अज्ञात की
अनामिका की साधना और कष्ट दोनों बराबर चल रहे थे । इतने कष्ट के बावजूद भी अनामिका अपने संकल्प पर अडिग थी और वह किसी भी कीमत पर अपनी साधना को छोड़ने को तैयार नहीं थी । सुबह 3:00 बजे से 5:00 बजे तक और फिर शाम को लगभग 7:30 बजे से रात को 9:30 बजे तक, यह तो साधना का क्रम बना ही हुआ था । वह दिन में भी थोड़ा जप आदि का प्रयोग कर लेती थी ।
इधर मैं इस चिंतन में लगा था कि उपद्रवी शक्तियों से उसके कष्ट का क्या समाधान ढूंढा जाए । मन में यही चिंता कि कहीं कभी कोई अनहोनी न घट जाए । मैंने इस समय उसकी माताजी को सूचित करना और निमंत्रित करना जरूरी समझा क्योंकि वे साधना केंद्र से बहुत दूरी पर नहीं रहती थीं ।
वास्तव में वे अनामिका के भाई की आईआईटी प्रवेश परीक्षा की तैयारी के चलते हुए अनामिका के पास आकर रहने में असमर्थता का अनुभव कर रही थीं ।
यद्यपि अनामिका का अपनी माता से निरंतर संपर्क बना हुआ था, फिर भी मैंने उन से निवेदन किया कि वे स्वयं आएं, अनामिका से चर्चा करें और उसकी मानसिकता क्या है उसको समझ कर हमें बताएं । मैं यह सुनिश्चित करना चाहता था कि कभी भी इस तरह की कोई बात न आए कि केंद्र में यह प्रयोग अनामिका को किसी प्रकार के प्रलोभन अथवा भय के द्वारा करवाया जा रहा था और उनको साधना और केंद्र दोनों की तरफ से आश्वस्त भी करना चाहता था ।
मैंने उनसे यह भी आग्रह किया यदि वे आकर अनामिका के साथ केंद्र में रहना चाहें और उसकी देखभाल करना अथवा सहयोग देना चाहें तो केंद्र पूरी व्यवस्था करने को प्रस्तुत था । यद्यपि उन्होंने रहना तो स्वीकार नहीं किया परंतु वे केंद्र में आ जरूर गई थीं । उन्होंने मुझे यही बताया कि अनामिका इस साधना को जारी रखना चाहती थी और किसी भी तरह से पीछे मुड़ कर देखने को प्रस्तुत नहीं थी ।
अनामिका की माताजी की दो ही चिंताएं थीं । एक तो किसी प्रकार से उनके बेटे का आईआईटी में प्रवेश हो जाए और दूसरा अनामिका का विवाह हो जाए । कहीं उनके मन में यह भय भी था की अनामिका साध्वी ही न बन जाए और इसकी उन्होंने मुझसे चर्चा भी की । मैंने उन्हें यही बताया कि कम से कम जैन परंपरा में कोई भी दीक्षा का व्रत तभी स्वीकार कर सकता है जब माता-पिता की अनुमति हो और वर्तमान में तो ऐसा कोई प्रश्न ही सामने नहीं था ।
सांय काल जब अनामिका की साधना प्रारंभ हुई तो प्रतिदिन होने वाला उपद्रव कुछ देर के लिए सामने आया और फिर अनामिका स्थिर हो गई । ऐसा लगने लगा कि उसे दिव्य आत्मा का साक्षात्कार हो रहा था । अनामिका की माताजी को आश्वस्त करने के लिए और अपनी उत्कंठा को शांत करने के लिए भी मैंने यही उचित समझा कि क्यों नहीं साधना की इस अवस्था में अनामिका से प्रश्न कर अज्ञात के रहस्य से पर्दा उठाने का प्रयास किया जाए ।
मैंने अनामिका से कुछ प्रश्न पूछे । मेरा पहला प्रश्न था कि क्या अनामिका का भाई आईआईटी में प्रवेश पा जाएगा । जहां तक मुझे स्मरण है संभवतः प्रश्न अनामिका की माताजी ने भी पूछे थे परंतु उत्तर अनामिका के पास कान लगाकर मुझे ही सुनने और समझने का प्रयास करना पड़ा था, क्योंकि आवाज फुसफुसाहट भरी होती थी और कई बार अस्पष्ट भी ।
अनामिका से यही उत्तर मिला कि यदि वह प्रयास करेगा तो उसे सफलता मिल सकती है (यहां मैं स्पष्ट कर दूं कि सन 2021 में उसका दिल्ली के एक प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश हो गया था) ।
अनामिका की माताजी ने अगला प्रश्न अनामिका के विवाह के संबंध में ही किया था और यह उत्तर मिला था कि वह विवाह करेगी और अपनी पसंद से । एक तरफ जहां अनामिका की माता जी इस उत्तर से आश्वस्त हुई थी वहीं अपनी पसंद के लड़के की बात सुनकर थोड़ी सी असहज भी । उसके लगभग एक साल के भीतर ही अनामिका का विवाह अपनी ही पसंद के एक लड़के से हो गया था और कन्यादान भी हमने ही सपत्नीक किया था ।
एक प्रश्न यह था कि अनामिका भविष्य में क्या करेगी तो उत्तर था कि वह दूसरों के जन कल्याण का कार्य करेगी और उसमें बाधाएं भी आएंगी । यह पूछने पर कि वह जन कल्याण का कार्य क्या होगा बात कुछ बहुत स्पष्ट नहीं हो पाई थी । संभवतः कुछ और प्रश्न रहे हों परंतु वे अब स्मृति में नहीं हैं ।
इस प्रकार साधना का, उसके बीच आने वाले उपद्रवों का, दिव्य आत्मा से वार्तालाप का, चिंताओं का और आश्वासनों का क्रम जारी था । अभी संभवतः और बहुत कुछ आना और होना बाकी था ।