भाग -11
दर्शन गुरुदेव के
अनामिका को हो रहे लगातार उपद्रवों ने मन में एक चिंता पैदा कर दी थी । अन्य समाज की एक साधिका और समस्या ऐसी जिसके समाधान का कोई निश्चित रूप नहीं था । किसी भी अनहोनी का दायित्व जैसे मैं अपने सर ओढे चला जा रहा था ।
तभी चिंतन उभरा कि मुझे अनामिका को पूज्य गुरुदेव आचार्य श्री महाश्रमण जी के दर्शन हेतु बैंगलोर ले जाना चाहिए जहां कि वे चातुर्मासिक प्रवास कर रहे थे । अंततः वही तो पूरे धर्म संघ के अनुशास्ता हैं और इन परिस्थितियों में यह अनिवार्य हो जाता था की उनकी निश्रा में चलने वाले कार्यक्रमों में यदि कोई चुनौती आ रही थी तो वे कम से कम उस से परिचित अवश्य हों, और उस संबंध में कोई दिशानिर्देश भी चाहें तो प्रदान कर सकें । साथ ही उनका आशीर्वाद हमारा आगे का मार्ग प्रशस्त कर सकता था ।
यात्रा को भी इस प्रकार से निर्धारित करना था कि अनामिका की सुबह और शाम की साधना का समय बाधित न हो और साथ ही उसे रास्ते में भी किसी प्रकार का कष्ट ना हो ।
केंद्र की एक और साधिका को साथ लेकर हमने बेंगलुरु की यात्रा की । पूज्य गुरुदेव के दर्शन किए, उन्हें पूरे घटनाक्रम की जानकारी दी और उनसे मंगल पाठ सुना । पूरी बात सुनने के बाद और मंगल पाठ प्रदान करने के बाद जब मैंने गुरुदेव के समक्ष यह चिंतन रखा कि मेरे लिए अब आगे करणीय क्या है तो उनका बहुत ही सहज उत्तर था कि जब भी कोई समाधान सामने ना आए तो चित शांत कर ईष्ट का ध्यान करो और फिर जैसा भी अंतर्मन कहे उसी रास्ते को चुन लो । मैंने इसे ही मंत्र मानकर स्वीकार कर लिया । अनामिका और अन्य साधिका तो गुरुदेव के दर्शन मात्र से और उनसे मंगल पाठ सुनकर ही आत्म विभोर हो गईं थीं ।
उसके बाद मैंने दोनों साधिकाओं के साथ साध्वी प्रमुखा श्री कनक प्रभा जी के दर्शन किए और पूरी बात विस्तार से बताई । उन्होंने अनामिका को सामने बिठा कर कुछ प्रश्न पूछे और विषय की गहराई में जाने का प्रयास किया । तब उन्होंने साध्वी शुभ्र यशा जी को संकेत किया कि संध्या काल के ध्यान के समय वे स्वयं उपस्थित रहकर अनामिका का मार्गदर्शन करें ।
सूर्यास्त के बाद चूंकि साध्वियों के प्रवास स्थल पर पुरुषों का जाना निषिद्ध है, अतः मैं अंदर तो नहीं जा पाया परंतु जब अनामिका ध्यान संपन्न कर बाहर आई तो बहुत प्रसन्न थी, क्योंकि बहुत दिनों के बाद उसका ध्यान निर्विघ्न संपन्न हुआ था । उसने बताया कि साध्वी जी ने कुछ विशिष्ट प्रयोग करवाया था और इस कारण से उसे किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं हुआ । (लगभग 2 साल बाद जब साध्वी जी से भीलवाड़ा में मेरा पुन: संपर्क हुआ तो उन्होंने बताया कि अनामिका को उसकी सुषुम्ना पर अर्हम का विशेष प्रयोग करवाया गया था । मेरी गलती यह रही कि मैं साध्वी जी से उसी समय प्रयोग का स्वरूप नहीं पूछ पाया और दूसरे दिन सुबह जल्दी ही बेंगलुरु से उदयपुर के लिए रवाना हो गया, यह सोच कर कि संभवतः अब समस्या का समाधान हो गया था । बाद में दिन में अनामिका और उसकी साथी साधिका भी दिल्ली लौट आए ।
मुझे क्या मालूम था कि उदयपुर में जब अनामिका की संध्या काल की साधना का समाचार मिलेगा तो मेरी चिंता और बढ़ने वाली थी ।